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धनकटी आंदोलन से सियासी सफर की शुरुआत करने वाले ,केंद्र में मंत्री, लोकसभा के सांसद और झारखंड के 3 बार मुख्यमंत्री बने
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धनकटी आंदोलन से सियासी सफर की शुरुआत करने वाले ,केंद्र में मंत्री, लोकसभा के सांसद और झारखंड के 3 बार मुख्यमंत्री बने
झारखंड को बनाने वाले,शिबू सोरेन आज हो गए खामोश
झारखंड निर्माण आंदोलन के पुरोधा,
झारखंड आंदोलन के सबसे बड़े नेता
पूर्व मुख्यमंत्री दिसोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे
झारखंड और भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले , राजनीतिज्ञ व आंदोलनकारी,झारखंड निर्माण आंदोलन के सबसे बड़े नेता ,झारखंड की सभ्यता संस्कृति ,जल ,जंगल, जमीन को बचाने,बाहरी लोगों (दीकू) से झारखंड को संरक्षित करने वाले ,जंगल काटो अभियान चलाने वाले,13 साल की उम्र में आंदोलन में शामिल हुए,36 साल की उम्र में सांसद बने और 46 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री,झारखंड आंदोलन के सबसे बड़े नेता शिबू सोरेन कि आज दिल्ली में स्थित अस्पताल में निधन हो गया। इसकी जानकारी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने ट्विटर (X) पर दी।
आज जब झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा था उसके पूर्व ही झारखंड के लोगों के लिए एक बड़ी दुखद खबर सामने आई।झारखंड निर्माण आंदोलन में शामिल झारखंड के सबसे बड़े नेताओं में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन स्वास्थ्य कारणों से लंबे समय से बीमार चल रहे थे।वह पिछले जून महीने से दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे। आज सुबह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने ट्विटर अकाउंट एक पर शिबू सोरेन के निधन की सूचना साझा की हेमंत सोरेन ने लिखा कि
"आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सब को छोड़कर चले गए हैं आज मैं शून्य हो गया हूं,,,"
पारिवारिक सफ़र,,,,
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रहे। शिबू सोरेन को दिशोम गुरु के नाम से भी जाना जाता है। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है, और उन्होंने झारखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन का नेतृत्व किया है। वह तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में भी सेवा दी।सोरेन का जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था , जो उस समय भारत के बिहार राज्य में था।वे संथाल जनजाति से हैं । उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा उसी जिले में पूरी की। स्कूली शिक्षा के दौरान उनके पिता की हत्या साहूकारों द्वारा नियुक्त गुंडों ने कर दी थी। शिबू सोरेन का विवाह रूपी किस्कू से हुआ था। उनके तीन बेटे दुर्गा सोरेन , हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन और एक बेटी अंजलि सोरेन हैं ।उनके बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। वे वर्तमान में जुलाई 2013 से दिसंबर 2014 तक सीएम रहे हैं।उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन 1995 से 2005 तक जामा से विधायक थे । दुर्गा की पत्नी सीता सोरेन जामा से पूर्व विधायक रही , जो अब भाजपा में हैं ।बसंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की युवा शाखा झारखंड युवा मोर्चा के अध्यक्ष और दुमका से वर्तमान विधायक हैं ।
राजनीतिक सफर,,,,
झारखंड आंदोलन में आए, खुद की पार्टी बनाई
धनकटी आंदोलन के जरिए महाजनी शोषण के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले शिबू सोरेन बांग्लादेश की आजादी आंदोलन से खूब प्रभावित हुए. 4 फरवरी 1972 को शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और कॉमरेड एके राय, तीनों बिनोद बिहारी के घर पर मिले। इस बैठक में तीनों ने सर्वसम्मति से तय किया कि बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी की तर्ज पर झारखंड मुक्ति मोर्चा नाम के एक राजनीतिक दल का गठन किया जाएगा, जो अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर संघर्ष करेगा।हालांकि झारखंड राज्य के लिए पहले भी मांग होती रही थी लेकिन झामुमो के गठन के बाद इसमें तेजी आई।
1977 में चुनाव हुए तो पहली बार लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन ने दुमका सीट से भाग्य आजमाया, लेकिन उनके हाथ असफलता लगी। इस चुनाव में भारतीय लोकदल के बटेश्वर हेंब्रम से शिबू सोरेन हार गए।
1980 में पहली बार दुमका से सांसद बने। इसके बाद उन्होंने साल 1986, 1989, 1991 और 1996 में लगातार जीत हासिल की। 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से हार का सामना करना पड़ा। जिसके चलते शिबू सोरेन ने अगले चुनाव में अपनी पत्नी रूपी सोरेन को चुनाव लड़ाया, लेकिन उन्हें भी बाबूलाल मरांडी से हार का सामना करना पड़ा।
साल 2004, 2009 और 2014 में वे फिर से दुमका संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने में सफल रहे। इस प्रकार कुल मिलाकर आठ बार शिबू सोरेन दुमका से लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
शिबू इस दौरान केंद्र की नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री बने।उन्होंने तीन बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोयला मंत्री के रूप में 2004 में, 2004 से 2005 तक और 2006 में कार्य किया।
धनकाती आंदोलन ने शिबू सोरेन को दिया एक नया नाम
शिबू सोरेन को "दिशोम गुरु" की उपाधि आदिवासियों ने दी है, जो उनके नेतृत्व और उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों के प्रति उनकी सम्मान और प्रशंसा को दर्शाता है। यह उपाधि उन्हें धनकटी आंदोलन के दौरान मिली, जिसमें उन्होंने महाजनों और साहूकारों के खिलाफ आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। आदिवासी समुदाय में उनकी लोकप्रियता और प्रभाव के कारण, उन्हें दिशोम गुरु के रूप में सम्मानित किया जाता है।1957 के आस पास महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन को शिबू सोरेन के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत मानी जाती है। उस वक्त सोरेन 13 साल के थे। कहा जाता है कि शोषण से परेशान होकर सोरेन उस वक्त महाजनों के खिलाफ बिगुल फूंकने का फैसला किया।इस आंदोलन का नाम दिया- धनकटी आंदोलन।
धनकटी आंदोलन से सियासी सफर की शुरुआत करने वाले शिबू सोरेन केंद्र में मंत्री, लोकसभा के सांसद और झारखंड के 3 बार मुख्यमंत्री बने।
पिता की हत्या के बाद आंदोलन में कूदे, दिशोम गुरु बने
संयुक्त बिहार के रामगढ़ में जन्मे शिबू सोरेन अपने भाई राजा राम के साथ रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के एक स्कूल में रहकर पढ़ाई किया करते थे. शिबू सोरेन के पिता शोबरन सोरेन उस वक्त के पढ़े- लिखे युवाओं में से एक थे, और वो पेशे से एक शिक्षक थे. बताया जाता है कि उस वक्त उनके इलाके में सूदखोरों और महाजनों का आतंक रहता था. महाजन और सूदखोर जरूरत प़ड़ने पर गरीबों को धन देते और फसल कटने पर डेढ़ गुना वसूलते. इतना ही नहीं अगर कोई गरीब उसे न चुका पाता तो वो खेत अपने नाम करवा लेते थे.
बताया तो ये भी जाता है कि उस दौरान शोबरन की बुलंद आवाज के चलते महाजनों और सूदखोरों में डर बना रहता था. एक बार तो उन्होंने एक महाजन को सरेआम पीटा भी दिया था। यही वजह था कि महाजनों के आंख की किरकिरी बन गए थे. एक दिन शोबरन अपने बेटे को लिए राशन लेकर हॉस्टल जा रहे थे, तभी रास्ते में उनकी हत्या कर दी गई।
शिबू इसके बाद ही आंदोलन में कूद गए। शिबू ने इसके बाद महाजनी आंदोलन चलवाया।इस आंदोलन में महिलाओं के हाथ में हसिया रहती और पुरुषों के हाथ तीर-कमान. महिलाएं जमींदारों के खेतों से फसल काटकर ले जाती। मांदर की थाप पर मुनादी की जाती, जबकि पुरुष खेतों से दूर तीर-कमान लेकर रखवाली करते। ऐसे में जमींदारों ने कानून व्यवस्था की मदद ली. इस आंदोलन में कई लोग भी मारे भी गये।जिस वजह से शिबू सोरेन को पारसनाथ के घने जंगलों में भागना पड़ा। हालांकि उन्होंने आंदोलन बंद नहीं किया। शिबू पारसनाथ के घने जंगलों में छिपकर प्रशासन को खूब चकमा दिया करते थे।
आंदोलन के जरिए शिबू सोरेन ने भूमि अधिकारों, मजदूर वर्ग के अधिकारों और सामाजिक न्याय की बात की. बाद में यह आंदोलन कई इलाकों में फैल गया था। धनकटी आंदोलन न केवल आदिवासियों के आत्म-सम्मान को बढ़ावा देने वाला था बल्कि उन्हें अपने हक के लिए लड़ने का साहस भी मिला।ये आदिवासी संस्कृति और पहचान की रक्षा का भी प्रयास था। धनकटी आंदोलन की वजह से बिहार सरकार बैकफुट पर आई और महाजनी प्रथा को लेकर सख्त कानून बनाने की घोषणा की।
धनकटी आंदोलन ने शिबू सोरेन को आदिवासियों का नेता बना दिया और बाद में इसी के चलते आदिवासियों ने उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि दी. “दिशोम” का मतलब होता है “जंगल” या “भूमि” और यह आदिवासी संस्कृति में एक गहरा संबंध रखता है. दिशोम गुरू का मतलब हुआ जंगल या जमीन का नेता।
81 वर्ष के शिबू सोरेन की एक आवाज पर पूरे झारखंड में आंदोलन का निर्माण हो जाया करता था आदिवासी समुदाय शिबू सोरेन को अपने भगवान के स्वरूप स्थान देते थे।अब झारखंड की राजनीति और झारखंड से अलविदा ले चुके हैं उनकी विरासत को उनके पुत्र हेमंत सोरेन संभाल रहे हैं। झारखंड आंदोलन के सबसे बड़े नेता रहे झारखंड को बनाने वाले को पूरा झारखंड नाम आंखों से अंतिम विदाई देगा।
