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हज़ारीबाग़ के चौपारण और सिलवार में भव्य अंदाज़ में निकाला गया रथ यात्रा

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हज़ारीबाग़ के चौपारण और सिलवार में भव्य अंदाज़ में निकाला गया रथ यात्रा

भारत 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित राज्य वाला एक अनोखा देश

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यहां खान पान रहन-सहन से लेकर पर्व त्योहार में भी विविधता देखने की मिलती है। लेकिन इन विविधताओं के बावजूद लोगों को एक सूत्र में बांधकर रखने का काम करते हैं। भारत में पर्व त्यौहार की बड़ी मानता है लोग बड़े शुद्ध पवित्र मन से अपनी आराध्य देवी देवताओं की पूजा पाठ करते हैं। ऐसे तो भारत में आने को प्रमुख पर्व त्योहार हैं परंतु कुछ पर्व त्यौहार ऐसे हैं जिसका प्रभाव पूरे भारत स्तर पर देखने को मिलताहै।

भारत के सबसे प्रमुख और खास त्योहारों में से एक मानी जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे रथ त्योहार और श्री गुंडीचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है।हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा बड़ी ही धूमधाम से निकला जाती है।इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून यानी शुक्रवार से शुरू होगी।

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पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक हिंदू तीर्थस्थल है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजते हैं।जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष महत्व है पूरी दुनिया से श्रद्धालु इस पवित्र यात्रा में शामिल होने के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने से रथ को खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?

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स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक दिन नगर देखने की इच्छा व्यक्त की. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी बहन को रथ पर बिठाकर नगर दिखाने निकले।इस यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर गए और वहां सात दिनों तक रुके।तभी से जगन्नाथ रथ यात्रा की परंपरा शुरू हुई

ऐसे तो रथ यात्रा के शुरू होने की कई मान्यताएं हैं जिसमें एक अन्य मान्यता है कि एक बार राधा रानी कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से मिलने पहुंची और वहां उन्होंने श्रीकृष्ण से वृंदावन आने का निवेदन किया। राधारानी के निेवेदन को स्वीकार करके एक दिन श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ वृंदावन के द्वार पहुंचे तो राधारानी, गोपियों और वृंदावनवासियों को इतनी खुशी हुई कि उन्होंने तीनों को रथ पर विराजमान करके उसके घोड़ों को हटाकर उस रथ को खुद की अपने हाथों से खींचकर नगर का भ्रमण कराया। इसके अलावा वृंदावनवासियों ने जग के नाथ अर्थात उन्हें जगन्नाथ कहकर उनकी जय-जयकार की। तभी यह यह परंपरा वृंदावन के अलावा जगन्नाथ में भी प्रारंभ हो गई।

बसे शुरू हुई है रथ यात्रा

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का इतिहास 12वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है।जब गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण करवाया था। हालांकि, रथ यात्रा की परंपरा इससे भी पहले शुरू हुई थी, और यह माना जाता है कि यह परंपरा 8वीं शताब्दी से ही चली आ रही है।

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और एकता का भी प्रतीक है। इस यात्रा में सभी वर्गों के लोग शामिल होते हैं, और यह एक ऐसा अवसर है जब लोग अपने मतभेद भूलकर एक साथ आते हैं।

रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ के तीनों रथों को हजारों श्रद्धालु खींचते हैं, और यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। रथ यात्रा के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, और यह त्योहार पूरे देश में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

रांची में रथ यात्रा

रांची के जगन्नाथपुर में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा का आयोजन हर साल धूमधाम से किया जाता है। यह यात्रा आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है और इसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी मंदिर तक जाते हैं।

रांची के जगन्नाथ धाम मंदिर का निर्माण 1691 में बरकागढ़ रियासत के नागवंशी राजा ठाकुर ऐनी नाथ शाहदेव ने करवाया था। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित है और पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है। मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक कथा है, जिसमें कहा जाता है कि राजा ऐनी नाथ शाहदेव ने पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के बाद अपने राज्य में भी उनकी स्थापना करने का निर्णय लिया। मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक उड़िया और राजस्थानी शैलियों का मिश्रण है। मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिसकी ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है।

हजारीबाग में रथ यात्रा

हजारीबाग के सदर प्रखंड के सिलवार पहाड़ी के गोद में अवस्थित जगन्नाथ धाम मंदिर में रथयात्रा मेला का आयोजन बड़े भाग्य तरीके से किया जाता है।सिलवार जगन्नाथ धाम मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए हजारीबाग के अलावा चतरा, रामगढ़, गिरिडीह, कोडरमा, बोकारो,धनबाद सहित कई जिलों के लोग पहुंचते हैं।

हजारीबाग का सलवार में स्थित जगन्नाथ मंदिर का भव्यता और महत्व को इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां पर 1952 से भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना की जाती रही है। इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए यह ऐतिहासिक रूप से काफी महत्वपूर्ण होता है तथा रथ यात्रा बड़े हर्ष उल्लास और खुशी के साथ व्यापक रूप से मनाया जाता है। मंदिर प्रांगण के आसपास भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

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हजारीबाग के चौपारण में होने वाली रथयात्रा का इतिहास रामगढ़ राजघराने से जुड़ा है। इस रथयात्रा की शुरुआत रामगढ़ राजघराने के सदस्य उदय भान सिंह ने की थी, जिन्होंने पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा से प्रेरित होकर इसे चौपारण में भी शुरू करवाया. उदय भान सिंह ने पुरी की तरह यहां भी रथयात्रा की शुरुआत झाड़ू लगाकर की, जिससे यह परंपरा आज भी चली आ रही है,चौपारण में निकलने वाली श्री जगन्नाथ रथयात्रा इस बार अंतरराष्ट्रीय स्वरूप में मनाई जा रही है। सियरकोनी धाम स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर द्वारा आयोजित इस भव्य यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा रथ में विराजमान होकर नगर भ्रमण करेंगे। इस साल की रथयात्रा में बिहार और झारखंड के अलावा लगभग 5 से 10 देशों के 100 से अधिक विदेशी भक्त शामिल होंगे, जो इसके मुख्य आकर्षण का केंद्र बनेंगे

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