तीन बार हुई शिक्षक नियुक्ति नियमावली 11 बार बदली गयी, युवाओं की गुजरती उम्र की दास्तां
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सही नियमावली की इंतेज़ार में
युवाओं की गुजरती उम्र की दास्तां
नहीं बन पा रही पुख्ता नियमावली, नियुक्तियों में आती है बाधा
तीन बार हुई शिक्षक नियुक्ति नियमावली 11 बार बदली गयी
शिक्षा जो किसी भी राज्य की भविष्य को बदलने की क्षमता रखती है। झारखंड गठन के बाद शिक्षा की छेत्र में जिससे जी से विकास होना चाहिए था । यदि देखा जाए तो दूर दूर वैसा दिखाई नहीं पड़ता। हर साल हजारों संख्या में शिक्षक बनने के सपने के साथ बी.एड ,डीएल.एड जैसे पाठ्यक्रम में नामांकित होते हैं।राज्य गठन के बाद सबसे अधिक नियुक्ति अगर किसी विभाग में होनी चाहिए थी और जितनी तेजी के साथ होना चाहिए था शायद उतना वास्तव में देखने को नहीं मिलता है। जबकि शिक्षा विभाग में सबसे अधिक संख्या में शिक्षक के पद रिक्त है। झारखंड गठन के बाद से अब तक दो बार प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति तथा दो बार PGT TGT शिक्षक की न्युक्ति प्रक्रिया हुई है।
रोजगार का इंतजार करता युवा और गुजरती उम्र
अभी झारखंड मे 70,000 से अधिक छात्र है जो विभिन्न स्तर में शिक्षक नियुक्ति का इंतजार कर रहे है।अकेला शिक्षा विभाग ही है।जहां राज्य में शिक्षकों के एक लाख से अधिक पद हैं।
नियुक्ति के साथ-साथ ,
सबसे अधिक नियमावली में संशोधन हुआ तो शिक्षा विभाग में
नियुक्ति के साथ सबसे अधिक नियमावली में भी शिक्षा विभाग ने ही बदलाव किया है।राज्य गठन के बाद से अब तक प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति नियमावली में 11 संशोधन हो चुके हैं। जबकि तीन बार नियुक्ति हुई। एक नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. ऐसे में देखा जाये, तो प्राथमिक व मध्य विद्यालय में एक बार शिक्षक नियुक्ति के लिए औसतन तीन बार नियमावली में बदलाव हुआ है।हाइस्कूल में शिक्षक नियुक्ति के लिए तीन व प्लस टू स्कूलों में नियुक्ति के लिए दो नियमावली बनी है।प्लस टू स्कूलों में दो बार प्राचार्य नियुक्ति के लिए नियमावली बनी, लेकिन एक भी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।वहीं हाइस्कूल में प्रधानाध्यापक की नियुक्ति के लिए शिक्षा विभाग ने तीन नियमावली बनायी। जबकि नियुक्ति एक बार हुई।
लगभग सभी सरकारी विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के पद रिक्त प्रभाव पर चल रहा है स्कूल
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने हाल में हाइस्कूल और प्लस टू स्कूलों में प्रधानाध्यापक से लेकर शिक्षक तक की नियुक्ति के लिए नियमावली बनायी है।लेकिन नियमावली के कुछ प्रावधानों को लेकर विरोध शुरू हो गया है। कहा जाए तो नियमावली में कुछ विसंगतिया ऐसी रह जाती है जो विरोध का स्वरुप बन जाती। और परिणाम यह होता है कि नियमावली बनाने के नाम पर युवती प्रक्रिया अधर में लटक जाती है।
2016 के बाद से नौ वर्षों में नहीं हो पाई ,एक भी झारखंड शिक्षक पात्रता के परीक्षा
वैसे तो NCTE के नियम अनुसार राज सरकार को प्रतीक वर्ष राज शिक्षक पात्रता परीक्षा लेने की बात कर परंतु झारखंड में जीवा सकता के कोसों दूर नजर आता है 1,2 वर्ष नहीं बल्कि 9 वर्षों की एक लंबी समय अवधि के बाद भी झारखंड में प्राथमिक शिक्षको की नियुक्ति के लिए झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा नहीं हो पाया।
इसी बीच झारखंड के सरकारी विद्यालयों में कक्षा एक से 8 तक के लिए शिक्षकों की नियुक्ति के लिए।बिना झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा के आयोजन के किए परीक्षा लिया जाने लगा। जिसके कारण कई प्रकार की कानूनी दांव पेच और विरोध देखने को मिला।CTET और JTET छात्रों के बीच विरोध की स्थिति उत्पन्न हो गई।मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इससे जुड़े कई मामले अभी भी कोर्ट में है।
इसके अलावा झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा नियमावली वर्ष 2016 के बाद से बनाने की प्रक्रिया चल रही है।अब तक इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है.
राज्य गठन के बाद प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पहली नियमावली 2002 में बनी थी। जिसमें बाद में कई संसोधन किए गए और अब तक इसे पूरा नहीं किया जा सका।
जेटेट नियमावली वर्ष 2016 के बाद से बनाने की प्रक्रिया जारी,
नहीं मिला अंतिम रूप
कब-कब बदली नियमावली
जेटेट : बिना परीक्षा के बन रही तीसरी नियमावली
राज्य में अब तक दो शिक्षक पात्रता परीक्षा हुई है। वर्ष 2012 में पहली नियमावली बनी थी।इसके आधार पर वर्ष 2013 व वर्ष 2016 में परीक्षा हुई। इसके बाद नियमावली में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हुई।वर्ष 2019 में दूसरी नयी नियमावली बनी।इसके बाद इसमें संशोधन हुआ, पर परीक्षा नहीं हुई।इसके बाद पिछले वर्ष 2022 और फिर 2024 में फिर नयी नियमावली बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई ,जिसमें पाठ्यक्रम के कठिनाई स्तर पर व अन्य कई विसंगतियों के विरोध हुआ , नियमावली पूरा नहीं हो पाया जो फिलहाल चल रही है
इधर विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्ति के लिए एक जेट हुई व दो नियमावली बनी है।
नयी नियमावली बनायी गयी।वर्ष 2002-2003 में प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति हुई, फिर 2006 में नियमावली बनायी गयी। वर्ष 2002
संचालन होता रहा. इसके बाद बनी नियमावली को हाइकोर्ट में
चुनौती दी गयी थी। हाइकोर्ट ने 16 दिसंबर 2022 को नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया। साथ ही इस नियमावली के तहत शुरू हुई सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं को भी रद्द कर दिया।कई परीक्षाएं हो चुकी थी।इसके बाद वर्ष 2022 में रद्द हुई परीक्षा का विज्ञापन वर्ष 2023 में फिर से जारी किया गया।वर्ष 2023 में शुरू हुई कई प्रतियोगिता परीक्षाओं की प्रक्रिया चल रही है.
विभिन्न विषयों के स्नातक स्तर के 8900 से अधिक पदों को किया गया सरेंडर
TGT/PGT शिक्षकों के पदों को एक कैडर बनाया गया
वेतनमान में भी हुई भारी कटौती।
इसके पूर्व स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति अलग-अलग कैडर के रूप में होती थी। सरकार ने इसकी नीति नियमावली में भी संशोधन कर इसे माध्यमिक सहायक आचार्य का नाम दिया है।अब झारखंड में कक्षा 9 से 12 वीं तक के शिक्षकों के लिए नियुक्ति के लिए एक ही परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। इसलिए नियमावली का शिक्षक संघ और छात्र विरोध कर रहे है। क्योंकि इस तरह से नियुक्ति प्रक्रिया होगी तो स्नातक और बी.एड किए हुए छात्र, माध्यमिक सहायक आचार्य शिक्षक नियुक्ति से बाहर हो जाएंगे।क्योंकि इसकी न्यूनतम योग्यता B.Ed और पीजी रखा गया है। इसको लेकर विभिन्न छात्रों का समूह न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे है।
पड़ोसी राज्यों में क्या है स्थिति
यदि हम झारखंड के अलावा अन्य पड़ोसी राज्य बिहार छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में नियुक्ति और नियमावली से जुड़े विवादों को देखें ,तो झारखंड में विसंगतियों की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में कई गुणा अधिक है। पड़ोसी राज्य बिहार में तीन लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति विभिन्नत स्तर पर कर दी गई। वह भी महज दो सालों के अंदर।अन्य नियुक्ति में भी झारखंड की स्थिति बदहाल है। यदि विशेष रुप से आकलन किया जाए तो प्रशासनिक स्तर पर ही नियुक्ति नियमावली बनाने में विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है जिसके कारण कुछ विवादित बिंदु सामने आती है और नियुक्ति नियमावली नयायालय तक पहुंच जाती है।
नियमावली का बनता बिगड़ता की और छात्रों का गुजरता हुआ उम्र
झारखंड में किसी भी नियुक्ति के प्रक्रिया शुरु होने से लेकर समाप्त होने तक में, औसतन 1से 2 साल का समय लग जाता है। वह भी तब जब स्थिति अनुकूल हो। अन्यथा इसकी अधिकतम समय सीमा का कुछ स्पष्ट नहीं। इन सभी के बीच झारखंड के छात्र युवा जोश तरह की परीक्षाओं में शामिल होते हैं उन्हें कोई सकारात्मक स्थिति देखने को नहीं मिलती और उनका मनोबल कहीं ना चाहिए गिरता जा रहा है सरकार की स्पष्ट नीति और नियत का ना होना छात्रों की भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है।