ईरान और इजरायल युद्ध पूरी दुनिया में इनके संघर्ष से फैली टेंशन
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ईरान और इजरायल युद्ध
पूरी दुनिया में इनके संघर्ष से फैली टेंशन
पूरे विश्व के देश आज एक दूसरे से प्रतियोगिता कर रहे हैं। प्रतियोगिता है।बाजार का बाजार में किसका वर्चस्व होगा। इस संघर्ष में संघर्ष का रूप युद्ध में बदल जा रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही पूरा विश्व दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक खेमा अमेरिका के साथ है तो दूसरा खेमा रूस और चीन के साथ खड़ा नजर आता है।प्रत्येक देश अपनी आवश्यकताओं और जरूरत के आधार पर किसी भी खेमे में शामिल होते हैं। इसके पहले यूक्रेन और रूस का युद्ध तो भली भांति सभी ने देखा की नाटो में शामिल होने को लेकर यूक्रेन पर किस प्रकार से रूस ने हमला किया था।और एशिया में अमेरिका की बढ़ती भागीदारी से कहीं ना कहीं एशिया के बड़े देश रूस और चीन को खतरा है। खतरा है बाजार का ,उनके वर्चस्व का अमेरिका अपने आप को विश्व का सम्राट घोषित करने पर लगा हुआ है। दो देशों के बीच युद्ध करवा के युद्ध विराम करना, और शांति दूत के रूप में खुद को सबके सामने प्रस्तुत करना, उसकी यह छवि दुनिया के सामने आ चुकी है। फिलिस्तीन इजराइल का युद्ध, फिर यूक्रेन रूस का युद्ध,भारत और पाकिस्तान का युद्ध कहीं ना कहीं यह सभी लड़ाई वर्चस्व की लड़ाई का उदाहरण है।
ईरान और इजरायल के चल रहे संघर्ष पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। दोनों देश लगातार एक-दूसरे पर लड़ाकू विमानों और मिसाइलों के जरिए हमले कर रहे हैं। यहां हैरानी वाली बात ये है कि एक समय ईरान और इजरायल के बीच अच्छी दोस्ती थी। यहां तक कि इजरायल ईरान को हथियार भी देता था, लेकिन फिर हालात ऐसे बदले कि आज दोनों देश एक-दूसरे के खून के प्यासे बन चुके हैं। खाड़ी के दोनों देश आज के वक्त में एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते हैं।
ईरान-इजरायल के बीच मौजूदा विवाद कैसे शुरू हुआ?
इजरायल ने 13 जून को ईरान पर बड़े पैमाने में हमला किया। उसके न्यूक्लियर और मिलिट्री ठिकानों को निशाना बनाया गया। हमले से एक दिन पहले इजरायल ने ईरानी लोगों को राजधानी तेहरान खाली करने को कहा था। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि 'ऑपरेशन राइजिंग लॉयन' लॉन्च किया गया है, ताकि इजरायल की सुरक्षा के लिए ईरानी खतरे को मिटाया जा सके। इजरायली हमलों के बाद ईरान ने भी जवाब कार्रवाई की। उसने इजरायल पर 100 से ज्यादा मिसाइलें दागीं।
ईरानी मिसाइलों ने इजरायल की राजधानी तेल अवीव समेत कई शहरों को निशाना बनाया। ईरान ने ऑपरेशन 'ट्रू प्रोमिस 3' के तहत इजरायली शहरों पर मिसाइल हमले किए। हालांकि, इजरायली हमलों में कई सारे टॉप ईरानी मिलिट्री अधिकारियों की मौत हुई, जिसमें 'इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स' (IRGC) के कमांडर हुसैन सलामी भी शामिल थे। कई न्यूक्लियर साइंटिस्ट भी इजरायली हमलों में मारे गए। लेकिन ईरानी हमलों में सिर्फ शहरों को नुकसान पहुंचा है, जबकि कुछ दर्जन लोगों की मौत हुई है।
ईरान-इजरायल के शुरुआती रिश्ते कैसे थे?
1948 में इजरायल एक देश के तौर पर अस्तित्व में आया। उस समय बहुत से मुस्लिम बहुल देशों ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। हालांकि, ईरान ने ऐसा नहीं किया और इजरायल के साथ अपने रिश्ते बनाए रखे। भले ही ईरान ने आधिकारिक तौर पर इजरायल को मान्यता नहीं दी, लेकिन दोनों देशों ने साझा मुद्दों पर अपने रिश्ते बनाए। ईरान और बाकी अरब देशों के रिश्ते अच्छे नहीं थे, क्योंकि वह एक शिया बहुल मुल्क था। ऊपर से इजरायल भी एक यहूदी बहुल देश बन चुका था।
मिडिल ईस्ट के बदलते हालातों को देखते हुए इजरायल के प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन ने 'पेरिफेरी डॉक्टरिन' को अपनाया, ताकि अरब देशों से निपटा जा सके। ईरान भी अरब मुल्कों से काफी ज्यादा परेशान था। उस समय ईरान पर शाह मोहम्मद रेजा पहलवी का शासन था और वह अमेरिका समेत पश्चिमी मुल्कों के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए थे। अमेरिका के ईरान और इजरायल दोनों के साथ अच्छे रिश्ते थे। इस वजह से ईरान और इजरायल भी एक-दूसरे के करीब आ गए। ईरान इजरायल को तेल भी देता था।
इजरायल-ईरान के रिश्ते कैसे बिगड़ने शुरू हुए?
1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद शाह का शासन खत्म हो चुका था और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की स्थापना हो चुकी थी। इस्लामिक क्रांति के बाद इजरायल को लेकर ईरान का रुख बिल्कुल बदल गया। इजरायल को फिलिस्तीनी जमीन कब्जा करने वाले देश के तौर पर देखा गया। ईरान के सुप्रीम लीडर आयातुल्लाह रूहोल्लाह खोमेनी ने इजरायल और अमेरिका को शैतान बताया। उनका कहना था कि ये दोनों देश मिडिल ईस्ट में सबसे ज्यादा दखलअंदाजी कर रहे हैं।
कुल मिलाकर इस्लामिक क्रांति ही वो पल था, जिसके बाद ईरान और इजरायल की दुश्मनी की शुरुआत हुई।
2010 में इजरायल ने ईरान ने कई न्यूक्लियर ठिकानों पर हमले किए, जिसमें कई सारे वैज्ञानिक मारे गए। इजरायल का कहना था कि ईरान परमाणु बम बना रहा है, जो उसके अस्तित्व के लिए खतरा है। इजरायल ये भी आरोप लगाता रहा है कि ईरान गाजा पट्टी में हमास और लेबनान में हिज्बुल्लाह जैसे चरमपंथी संगठनों को फंड देता है, ताकि उस पर हमला किया जा सके। ईरान ने भी कई बार इजरायली हमलों का जवाब देते हुए इजरायल पर अटैक किया है, जिसमें मौजूदा अटैक भी शामिल है।
12 दिनों की लड़ाई में ईरान को इजरायल के मुकाबले भारी नुकसान हुआ है। न सिर्फ उसकी परमाणु परियोजनाएं प्रभावित हुईं बल्कि जान-माल का भी भारी नुकसान हुआ है. इजरायल को भी नुकसान झेलना पड़ा, लेकिन वह काफी हद तक सीमित और नागरिक स्तर पर रहा।
13 जून 2025 की रात को इजरायल ने अचानक ईरान पर एयरस्ट्राइक कर एक नई पश्चिमी एशिया में जंग की चिंगारी भड़का दी. इस एक हमले ने परमाणु आशंकाओं से जूझ रहे दो दुश्मनों के बीच के टकराव को चरम पर पहुंचा दिया, जिसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे पर घातक हमले किए, इन हमलों में भारी जान-माल का नुकसान हुआ लेकिन शुरुआती संघर्ष में कोई पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ. जंग से शुरू हुई एक ऐसी 12 दिनों की आग, जिसमें रॉकेटों की बारिश, मिसाइलों की तबाही, नागरिकों की चीखें और सैन्य ठिकानों की राख ही रह गई. ईरान ने इजरायल के तेल अवीव जैसे प्रमुख शहरों को निशाना बनाया, जबकि इजरायल ने ईरानी कमांड और परमाणु संरचनाओं को ध्वस्त करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. तीन परमाणु फैसिलिटी पर अमेरिका के हमले के बाद ईरान ने कतर में अमेरिकी बेस को अपना निशाना बनाया. इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दोनों देशों के बीच सीजफायर का ऐलान कर दिया है.